बूढ़ादेव कौन हैं भाग -2 ~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana

बूढ़ादेव कौन हैं भाग -2



                बूढ़ादेव कौन हैं भाग -2             

देखने और सुनने में आता है कि आदिवासीजन बड़ादेव और बूढ़ादेव को एक ही देव मान लेते हैं. बड़ादेव और बूढ़ादेव के ज्ञान, मान्यता और महत्ता में में बहुत बड़ा फर्क है. मानव में एक ही अंग की कमी/फर्क के कारण समाज उसे पुरष नहीं मानता. उसी प्रकार बड़ादेव और बूढ़ादेव के स्थायित्व, सांस्कारिक और अध्यात्मिक दर्शन में बहुत बड़ा फर्क है. बड़ादेव के संबंध में पूर्व में उल्ले किया जा चुका है. बड़ादेव आदि और अनंतशक्ति का ध्योतक है, जिसकी शक्ति की कोई सीमा नहीं है. वह निराकार, सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी है. वह पुकराल/श्रृष्टि के रचयिता है. वह कण-कण में विराजमान है. देव-देवियों, पुकराल/श्रृष्टि एवं शरीर के प्रत्येक कण के अंश में बड़ादेव की शक्ति व्याप्त है. बड़ादेव से बड़ा और कोई देव/ईश्वर नहीं है. हमें बड़ादेव और बूढ़ादेव में अंतर को समझना होगा, अन्यथा हम अपने आने वाली पीढ़ी को इनकी संरचना/स्थायित्व, सांस्कारिक महत्व और अध्यात्मिक दर्शन का हस्तान्तरण नहीं कर पायेंगे.


           आदिवासियों की परम्परा अनुसार बूढ़ादेव सभी गोत्रज/कुल/पुरखा/कुनबा का देव है. इसे प्रतीक के रूप में सिर्फ साजा झाड़ के मूल में स्थापित किया जाता है. सवाल अब यह भी उठता है कि इसे साजा झाड़ में ही स्थापित क्यों किया जाता है, अन्य झाड़ों में क्यों नहीं ? इसे घर में क्यों स्थापित नहीं किया जाता ? उपरोक्त के संबंध में समाज की प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दर्शनों की मान्यता है कि साजा का झाड़ तूफान, बारिस, भूमि कटाव की स्थिति में भी उसके जड़ अतिमजबूती से जमीन को जकड़े रखते हैं, जो उसकी हर कठियाईयों की स्थिति में भी अडिगता और ठहराव की निशानी है. इसके मोटे, बड़े आकार के पत्ते धूप और बारिस से भी जमीन का संरक्षण करते हैं. इसके फल दुनिया के नक्शे की बनाई गई अंडाकार द्वीध्रुवीय आकृति के समान दिखाई देता है. इस फल में ऊर्ध्वाकार पांच पोर (धारियां) विकसित होते हैं. इन पांच पोरों (धारियों) की बनावट और संख्या में श्रृष्टि के पंचतत्व, गोंडवाना के पांच खण्ड भू-भाग के सत्व-तत्व का दर्शन मिलता है, जो श्रृष्टि की उत्पत्ति, जीवनचक्रण एवं जैविकीय पारिस्थितिकी के लिए पूर्ण है. इसीलिए इसे साजा झाड़ के मूल में स्थापित किया जाता है. वर्तमान में वनों के विनाश और साजा झाड़ की उपलब्धता की कमी के कारण महुआ आदि झाड़ों में भी स्थापित किए जाते हैं.
गोत्र सगावार कुलदेव बूढ़ादेव की स्थापना के पूर्व निश्चित स्थान पर विधानपूर्वक साजा का पौधा रोपण किया जाता है या प्राकृतिक रूप से विकसित पौधे को चिन्हांकित कर लिया जाता है. उसके पश्चात धार्मिक विधि-विधान से बूढ़ादेव को स्थापित किया जाता है. बूढ़ादेव स्थापित साजा के झाड़/पेड़ को किसी भी रूप नुकसान पहुँचाना या काटना पूर्णरूप से वर्जित होता है. यदि कोई जानबूझ उसे नुकसान पहुचाता है या काटता है तो उसे जीवन में भारी कलह का सामना पड़ता है. आज भी इस बात की सत्यता को झुठलाया नहीं जा सकता.


          आदिवासीजनों की मान्यता है कि इस देव परम्परा/संस्कृति में बूढ़ादेव उनके कुल-गोत्र/कुनबा का पहला व्यक्ति है जो, बूढ़ा होकर अपना भौतिक देह त्याग चुका है. उसकी जीवात्मा को अपने कुल/कुनबा/पूर्वज/देव के रूप में साजा के झाड़ के मूल में स्थापित कर दिया गया. उस पहले व्यक्ति से लेकर अब तक अपने भौतिक स्वरुप को त्यागने वाले कुल/कुटुंब/परिवार के पत्येक सदस्य की जीवात्मा को धार्मिक विधि-विधानपूर्वक स्थापित कर दिए गए हैं एवं यह निरंतरता अनंतकाल तक चलती रहेगी.


         गोंड आदिवासियों के कुल-गोत्र/कुनबा/कुटुंबवार अलग-अलग बूढ़ादेव स्थापित किए जाते हैं, किन्तु पूजा विधान समान होता है. गोत्र एवं देव सगा संख्या अनुसार पितृ आत्माओं को भोग दिए जाने हेतु साजा के पत्तों में हिस्से रखकर उन्हें सुमिरन करते हुए सभी हिस्सों से ५-५ निवाले अर्पित किए जाते है. इस देव सगा संख्या के आधार पर गोत्र अनुसार परिवार को अपने ही गोत्र/कुल/कुटुंब के अन्य स्थान पर रहने वाले परिवार/कुल-गोत्र/सगा के बूढ़ादेव में अपने पूर्वजों को शामिल कर सकता है, बशर्ते वह उसी कुल-गोत्र/देवसंख्या का सगा हो. जैसे- परतेती गोत्र का पांच देव सगा दुनिया के किसी अन्य स्थान में रहने वाले परतेती गोत्र वाले पांच देव सगा के बड़ादेव पेनठाना में शामिल होकर अपने परिवार के पूर्वजों को विधानपूर्वक शामिल कर सकता है.
पूर्व के देवगढ़, गढ़ियों में सीमित परिवार होने से लोग एक साथ बूढ़ादेव की पूजा करते थे. कालान्तर में परिवारों की संख्या में विस्तार होकर दूर-दराज, अलग-अलग गावों, कस्बों में व्यवस्थित होने के कारण अपनी सुविधानुसार अपने गाँव तथा परिवार के वरिष्ठतम सदस्य वाले कुनबे के गावों में बूढ़ादेव स्थापित कर लिए. सुविधानुसार उसी कुल/परिवार के वरिष्ठतम सदस्य को विधानपूर्वक बूढ़ादेव स्थापित करने की पात्रता होती है. बूढ़ादेव की पूजा कार्य के लिए पूजा-पद्धति के जानकार उसी कुल/कुनबा/परिवार के व्यक्ति को पुजारी का पदभार दिया जाता है तथा पूजा का कार्य सम्पन कराया जाता है. इस कार्य के लिए कुल का पूरा परिवार सहयोग करता है.


3 टिप्‍पणियां:

  1. इसमे लिखा है कि *बड़ादेव* प्रकृति शक्ति को और पुरखा के मृत्यु होने पर उसे *बुढ़ादेव* के रूप में पुजते है। तो आपसे जानना चाहूंगा कि मुश्किल से 10 से 12 वर्ष पहले आपके अपने घर या क्षेत्र में क्या बोलते थे बड़ादेव या बुढ़ादेव..?? । या कौन से गोंडी दर्शन में इनका ज़िक्र *अलग अलग* मिलता है..?? । *एक भी गोंडी किताब का नाम बता दे जिसमें इन दोनों को अलग अलग व्याख्या किया गया हो* या कोई और क्षेत्र बता दें...।


    जहाँ तक मेरे द्वारा जितना भी *गोंडी पुनेम दर्शन* का अध्ययन किया गया है उसमें एक भी दर्शन में इन दोनों को अलग अलग होना नहीं मिलता....। हा क्षेत्रवार बोल चाल की भाषा में विभिन्न नामों से जरूर प्रयोग करते हैं मसलन *फड़ापेन शक्ति उपासना का दर्शन* में गोंडीयन समुदाय के गणजीव/गण्डजीव अति प्राचीन काल से *फड़ापेन* शक्ति की उपासना करते आ रहें हैं। इस शक्ति को भिन्न भिन्न संभागों में अलग अलग नामों से संबोधित किया जाता है जैसे:-

    1)बैतुल,छिंदवाड़ा और नागपुर क्षेत्र में *फड़ापेन*

    2)सिवनी,बालाघाट परिक्षेत्र में *सजोरपेन*

    3)मंडला में *बड़ेपेन*

    4) जबलपुर,शहडोल,सिधी, सरगुजा और *छत्तीसगढ़* में *बुढ़ालपेन*

    5)आन्ध्रप्रदेश में *परसापेन*

    6) गढ़चिरौली में *हजोरपेन*

    7) अमरावती परिक्षेत्र में *कोरूकपेन*

    8) छोटा नागपुर परिक्षेत्र में *मारांग बुरू पेन*

    9)संभलपुर क्षेत्र में *सिंगा बोंगा पेन* और

    10) खण्डवा ,झाबुआ में *भिलोटा पेन*

    आदि नामों से संबोधित कर उसकी उपासना करते हैं। जिसका अर्थ होता है *सर्वोच्च शक्ति* ..। (नोट:- हिन्दी भाषी क्षेत्र में *पेन को देव* बोलते हैै)

    तो कौन से माध्यम से आपने और किस गोंड़ी शब्द का *हिन्दी रूपान्तरण* आपने बड़ादेव और बुढ़ोदव के रूप में अलग अलग किया या किस *अनुवादक* ने हिन्दी में अनुवाद किया किया कि दोनों अलग अलग हैं ..?? क्योकि किसी भी मुल दर्शन गोंडी में ये *एक ही हैं।* और यही बात पुरे गोडी पुनेम का *शाश्वत सत्य* हैै।
    💫💫💫 *थानू ध्रुव 2.O*

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  2. Budha dev , siv sankar ji ko bolte hai kinyo ki gondwaana kaa rahsy siv ji ki damroo se hua hai , bada dev wo hai Jo 5 kendriyo se milkar bana hai , jal , asmaan , hawa , miti ....

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  3. अखिल भारतीय बियार समाज आदिवासी जिला सहयोजक मनाराम बियार गांव बिरदा तेदवाही ज़िला कोरबा ब्लाक कटघोरा छत्तीसगढ़

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