~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana
सम्पूर्ण गोंडवाना के आदिम वंश, समुदाय "वेन" और "पेन" संस्कृति/ दर्शन का वाहक है. गोंड आदिम समुदाय की निज भाषा "गोंडी" में पढ़े जाने वाले शब्द "वेन" और "पेन" केवल दो अक्षरों से मिलकर बने सबसे छोटे शब्द हैं, किन्तु इनके ज्ञान गर्भ में छुपे सामाजिक, सांस्कृतिक, आस्था और आध्यात्मिक दर्शन की सीमाएं सृष्टि की तरह विशाल और अटल है. "वेन" और "पेन" के सम्बन्ध में समाज के अनेक दार्शनिक, भाषाविद, विज्ञानियों ने विस्तारपूर्वक सार्थक उपदेश दिए हैं, देते हैं, जो अनमोल हैं.

हम यह मानते हैं कि "गोंडी" के बगैर "गोंड" और "गोंडवाना" को समझना आसान नहीं है. समय की निरंतरता के साथ मानव पीढ़ियों के आने और बीत जाने तथा नयी पीढ़ी की अभिरुचि में कमी के कारण पीढ़ीगत चली आ रही प्राचीन भाषाओं के नैसर्गिक हस्तांतरण के पैतृक विधा का तेजी से विलोपन हो रहा है. इस प्राचीन भाषा के विलोपन के लिए हमारी हर पिछली पीढ़ियाँ जिम्मेदार हैं, ऐसा कहकर हम अपने जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते. एक विशेष विषय की तरह हम अपने भाषा गुरुओं से सीखने का प्रयास करें, जिससे गोंडी को समाज में पुनर्स्थापित कर सकें और यही समय की मांग है.
दूसरी ओर समय के साथ साथ मानव समाज, संस्कृति, दर्शन, भाषा और ज्ञान आदि का विज्ञान के माध्यम से विस्तार और विकास हो रहा है. विज्ञान ने किसी ज्ञान को प्राप्त करने के लिए भाषाओं के बंधन को तोड़ दिया है. अतः समाज के वर्तमान गोंडी भाषी लोगों का प्रमुख उत्तरदायित्व है कि समाज के निज भाषा गोंडी के शब्दों में छुपे ज्ञान को गोंडी और वर्तमान प्रमुख भाषाओं में तथा विभिन्न माध्यमों में स्थाई रूप से सहेजने के लिए एक अभियान के तौर पर प्रयास करें, ताकि समाज के वर्तमान और आनेवाली पीढ़ियों को वैज्ञानिक तौर तरीकों से ज्ञान का संवर्धन, संरक्षण और सुरक्षित हस्तांतरण कर सकें.

इसी परिप्रेक्ष्य में हम यहाँ संक्षेप में केवल "पेन" (निराकार/ अदृश्य/ ईश्वर) से जुड़े मान्यताओं के नैसर्गिक तथ्यों पर विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे.

सृष्टि के पंचतत्वों में आदिम वंशों के पेन और उनके पेनों का मुखिया सल्ले गांगरे पेन/ परसापेन/ सजोरपेन/ हजोरपेन (बड़ादेव) की नैसर्गिक और वैज्ञानिक अवधारणा नीहित है. वह सृष्टि रचयिता है. वह सर्वोच्च शक्ति है. वह तत्वों के उत्पत्तिकर्ता है. वह कण-कण में विराजमान है. पेनों का पेन सल्ले गांगरे पेन है. वह निराकार एवं अजन्मा है. उसका साक्षात्कार पेनों से होता है. वह प्रकृति के सभी संसाधन, शरीर के अन्दर तथा बाहर वातावरण में सामान रूप से विद्दमान है. इस पुकराल/ सृष्टि में सल्ले गांगरे पेन/ परसापेन/ सजोरपेन/ हजोरपेन से बड़ा कोई पेन/शक्ति नहीं हैं.

गोंड आदिम वंश में "सल्ले गांगरे/ परसापेन/ सजोरपेन/ हजोरपेन शक्ति के संबंध में धारणा है कि सृष्टि की सृजन प्रक्रिया "नर" और "मादा" गुणधर्मी तत्वों के नौसर्गिक संयोजन से पूरा हुआ. इस नर और मादा गुणधर्म धारक तत्व को गोंडी में क्रमशः "सल्ले" और "गांगरे" कहा गया है.

दूसरे शब्दों में "सल्ले" अर्थात धनात्मक (+) या पितृ गुण एवं "गांगरे" अर्थात ऋणात्मक (-) या मातृत्व गुण शक्ति से है. धनात्मक और ऋणात्मक गुण सृष्टि के सृजन एवं विखंडनकारी शक्तियां हैं. इन असमान गुणों (+) एवं (-) के प्रबल नैसर्गिक आकर्षण और संयोजन से सृजन/ निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है. उसी तरह समान गुण (+) एवं (+) तथा (-) एवं (-) के संयोजन से विखंडन/ नष्ट होने की प्रक्रिया आरम्भ होती है. इन्ही धनात्मक एवं ऋणात्मक शक्ति के जागृत संयोग के कारण सृष्टि के स्वरुप का निर्माण हुआ तथा इसी शक्ति के कारण ही सृष्टि के समस्त संसाधनों का निर्माण, ग्रह-नक्षत्रों के सञ्चलन की गति निर्धारित हुई. उदाहरण स्वरुप चुंबक में समाहित धन एवं ऋण को मान सकते हैं. चुंबक में आकर्षण और प्रतिकर्षण होता है. यही आकर्षण एवं प्रतिकर्षण शक्ति निरर्ग/ सृष्टि में भी विद्दमान है, जो सम्पूर्ण पुकराल में नैसर्गिक ऊर्जा के रूप में व्याप्त है. इन्ही ऊर्जा शक्तियों के संयोजन से सृजन/ उत्पत्ति/ निर्माण और वियोजन से विघटन/ विनाश/ नष्ट होने की प्रक्रिया को क्रमशः जन्म और मृत्यु भी कह सकते हैं.
पुकराल के समस्त भौतिक-अभौतिक, चर-अचर, जीव-निर्जीव, ठोस-तरल सभी संसाधनों की उत्पत्ति, विकास और विघटन की गणन पद्धति, पैरामीटर्स में व्यापक रूप से यह नैसर्गिक सिद्धांत विद्दमान है. सल्ले गांगरे शक्ति अर्थात "धन एवं ऋण" शक्ति ही वह "नर एवं मादा" शक्तियां हैं, जिनके मातृत्व एवं पितृत्व गुणों से संतति उत्पन्न होते हैं. संसाधनों की उत्पत्ति एवं अंत तथा जीवों का जन्म एवं मृत्यु प्रकृति के चक्रण का नियम है, जिसे हम जीवन चक्र या विज्ञान की भाषा में पारिस्थितिकी अथवा पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं. अतः सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश का स्वरुप तथा सम्पूर्ण पुकराल की अनंत "धन" एवं "ऋण" शक्ति या पितृत्व एवं मातृत्व शक्ति का द्योतक सल्ले गांगरे/ परसापेन/ सजोरपेन/ हजोरपेन (बड़ादेव) है.

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा लगीस अपन संस्कृति ला जान के अब अपन संस्कृति ला सब आदिवासी भाई मन ल भी जानकारी दे सक थो । **जय सेवा**

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