~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana

दशानन रावण " गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..

......" दशानन रावण "......गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..
विभिन्न देशों में पूजनीय दस रावण :-
01 . कई रावण ...... लँका
02 .बसेरावण ..... ईराक
03 . तहिरावण .... ईरान
04 . कहिरावण ....मिश्र इजिप्त
05 .दहिरावण ... सऊदी अरब
06 . अहिरावण ... अफ्रीका
07. महिरावण ... क्रोएसिया
08 .इसाहिरावण ... इस्राइल
09 .बहिरावण ... भूमध्य सागर
10 . मेरावण ...... आर्मेनिया
ये सब गौँड़ राजा थे ।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया जब्कि  रावणपेन को पूजने वाले में मनुवादियों के अतिरिक्त  सारणा, सैंथाल, द्राविङ व गोंड-धर्म के आदिवासी,व कुछ अनुसूचित जातियों के अलावा कुछ ओबीसी के  लोग भी करते हैँ ।...
...किसी मित्र ने सवाल खडा किया है कि रावण गोंड आदिवासी  है या ब्राम्हण? कई मित्र रावण को ब्राम्हण साबित करने मेँ लगे हुए  हैँ।
अच्छा होता अगर ये सवाल शंकराचार्य जैसे लोगो से पूछा जाये। अगर रावण ब्राम्हण होता तो हिँदू धर्म के पोषक बामन बनिया और एंटिनाधारी तथा राखी सावंत से ज्यादा मेक-अप करने वाले पाखंडी अपने ब्राह्मण  पुर्वज को हर साल नहीँ जलाते। अगर कोई मित्र रावण को ब्राम्हण मानता है तो पंडितों को रावण की औलाद मानना होगा। अगर रावण ब्राम्हण है तो विभीषण भी ब्राम्हण हुआ ! फिर जब विभीषण रावण से लात खाकर राम के पास आया तो विप्र पुजा को मर्यादा और श्रेष्ठ मानने वाला राम को भी विभीषण को दंडवत प्रणाम करना चाहिए था!  जैसे एक ब्राह्मण  दूसरे ब्राम्हणोँ को करता था । परन्तु यहाँ तो विभीषण राम को दंडवत प्रणाम करता है।  क्या राम इतना  मूर्ख था कि जो पंडित को पैर स्पर्श करवाता और मनुस्मृति का पालन नहीं करता!
रावण को जानने के लिये गोंडवाना लैँड और गोंड-समाज को जानना जरुरी है। गोंडवाना लैँड पाँच खंड धरती को कहा गया है और यहाँ का राजा शंभु शेख को माना गया है।  जैसे गोंडी साहित्य या पेनपाटा मेँ मिलता है। शंभु शेख के शं से शंयुग=पाँच तथा भु=धरती और शेख=राजा यानि शंभु शेख मतलब पाँच खंड धरती(गोंडवाना लैँड) का राजा। गोंडियन शंभु शेख,शंभु गौरा को मानते हैँ और राजा रावण से बडा शंभु भक्त कोई है ही नहीँ ।। इसलिए रावण गोंड आदिवासी  है। रावण शब्द रावेन का बदला रुप है और अई रावेन,मईरावेन रावण(रावेन) के पुर्वज हैँ जो न सिर्फ रामायण बल्कि गोंडी साहित्य मेँ भी मिलता है और इनके नाम के साथ वेन  जुडा है और गोंडियन कुल श्रेष्ठ या जीवित बुजुर्ग को वेन=देव मानता है।  जैसे सगावेन=सगा देवता इसलिए ये तथ्य रावेन को गोंड-समाज साबित करता है। केकशी रावण की माँ द्रविङ सभ्यता की है।  जरा रामायण खोल के देखेँ और गोंड द्रविडियन हैँ। इसलिए रावण गोंड है। राजा रावेन मंडावी गोत्र का था और महारानी दुर्गावती भी मंडावी हैँ।  दोनो ने अपने अपने  शासन काल मेँ 5 तोले के सोने का सिक्का चलाये थे। महारानी दुर्गावती ने अंग्रेजों व मुस्लिम शासकों से युद्ध लडा और १५वर्ष के शासनकाल के बाद वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। कृपया गोंड-समाज का इतिहास पढें । ये समानता है। राजा रावेन ने सोने की लंका बनवायी थी और,रानी दुर्गावती के शासन काल मेँ चलाये गये सोने के सिक्के मेँ पुलस्त लिखा है और पुलस्त वंश का रावण है।  इसलिए रावण गोंड है। मंडावी गोत्र के लोग सांप या नाग को आज भी पुजते हैँ । मंडावी गोत्र वाले ये बात जानते ही हैं कि राजा रावण के पुत्र मेघनाथ को नागशक्ति प्राप्त थी।  इसलिए नागबाण का इस्तेमाल करता था और पुजा करता था। ...मगर मनुवादियों ने नागशक्ति के बाण की बजाय शक्तिबाण प्रचारित कर दिया है।
 भारत में भारत महाद्वीप में अधिकांश  श्याम व काले वर्ण के लोग सारणा, सैंधाल, द्राविङ गोंड-समाज के सदस्य हैं
..." दशानन रावण "......गोंडी भाषा में राजा को कहा गया है।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया है ।  मगर इसे पूजने वाले द्राविङ, सैंधवी, सारणा  गोंड-धर्म के आदिवासी  लोग रावण-दहन का विरोध  करते हैँ ।...स्मरण रहे मनुवादियों के प्रभुत्व वाले नागपुर कार्यालय में, मनुवादियों ने सन १९३२ में पूना-पैक्ट के अंतर्गत ८०% आरक्षण  रद्द होने की खुशी में पहली बार रावण-दहन कर खुशी मनाई थी। मगर हम आज मनुवादियों से ही आरक्षण व नौकरी की गुहार लगा रहे हैं।
आज की पीढी नहीं जानती कि वे दशहरे के नाम पर अपने अधिकार व अपने पूर्वजों के हर साल जुलूस निकाल कर सार्वजनिक रुप से अग्नि-संस्कार कर अपमानित कर रहे हैं और मनुवादियों के त्यौहारों को विभिषण की तरहं  अपना समझने की भारी भूल कर रहे हैं। विडंबना यह भी है कि आदिवासी,से अनुसूचित जाति व ओबीसी बनकर, आरक्षण का लाभ लेने वालों की कमी नहीं है। मगर आरक्षित समाज के अधिकांश लोग अपने  रावणपेन, राजापेन. रावण-महाराजा को अपमानित कर, अपनों का शोषण व अत्याचार करने वालों के रंग में रंगे-सियार बन गये हैं। क्योंकि हमारे समाज के अधिकांश  विभिषण अभी भी जिन्दा घूम रहे हैं।

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