ग्राम देवों मे प्रमुख में ठाकुर देव

               
                   ग्राम देवों मे प्रमुख में ठाकुर देव   

नांगा बैगा-नांगा बैगिन के ७ पराक्रमी पुत्रों, जो सबसे बड़े पुत्र कुंआरा भिमाल की खोज में निकले थे, उनमे से एक ठाकुर देव (जाटवा) है. माना जाता है की ठाकुर देव बीज परीक्षण, भूमि उर्वरा परीक्षण, जल, कीट पतंगी गुण-धर्म के ज्ञाता थे, 

                           जिन्होंने ग्राम के मानव समुदाय को फसल जीवनचक्र के ज्ञान के द्वारा अधिक अन्न-धन उपजाकर समृद्धि हासिल करने का मार्ग बताया. इसलिए ग्राम देवी देवताओं की मान्यता अनुसार बिदरी मनाकर बीज सूत्र/बोए जाने वाले अन्न बीज का अंश चढाकर बीज की रक्षा, फसलों की कीट-पतंगों से रक्षा, भूमि उर्वरा, हवा, जल सान्द्रता/समन्वय आदि प्रकृतिगत वैधानिक रक्षा की कामना पूर्ति के लिए कृषि ग्राम जीवन में ठाकुर देव की पूजा की जाती है.

                          ठाकुर देव की स्थापना भी महुआ, आम, नीम आदि मान्य पेड़ों पर ही प्रकृतिगत सांस्कारिक विधानपूर्वक किया जाता है. यह ग्राम का ठाकुर और ग्राम देवों मे प्रमुख है.

                          ठाकुर देव   चित्र 1:1


                       जिस तरह गांव चलाने की पूरी ज़िम्मेदारी गांव के बुजुर्गों पर रहती है, कुछ भी कार्यक्रम मुखिया को बिना पूछे नहीं करते हैं, मतलब सार्वजनिक काम हो तो पूरी ज़िम्मेदारी एवं मार्गदर्शक के रुप में बड़ों की भूमिका रहती है, उसी तरह से गांव में ठाकुर देवता है। ठाकुर देवता ग्राम के सब देवता में से बड़े माने जाते हैं, इसलिए सबसे पहले पूजा ठाकुर देवता की होती है। पूजा के स्थान पर केवल पुरुष लोग ही जाते हैं। महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है, जिसके घर में औरत मानसिक धर्म/माहवारी में रहती है, तो उस घर से पुरुष भी ठाकुर देवता के स्थान में नहीं जाते और ना ही वहां का प्रसाद ग्रहण करते है।
                       
   स्वभाविक सी बात है किसी भी देव स्थल या मंदिर ठाना देखकर हमारा सर स्वतः ही झुक जाता है 
ग्राम मे किसी भी देवी देवताओं कि मूर्ति मंदिर मिले या ना मिले लेकिन  ग्राम देवी देवता, मेढ़ो देव, बैगा चौरा, ठाकुर देव, और महामाया माता का मंदिर मिल ही जाता है, ग्राम मे ये सभी देवी देवताओं के बिना कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है, 

                    हमने भी सबसे पहले सुमिरन किया देवाधिदेव ठाकुरदेव जी का। ग्राम देवताओं में सर्वाधिक शक्तिशाली-प्रभावशाली माने गये हैं, ठाकुरदेव। बस्ती के एक सिरे पर इनकी स्थापना है, हमारे यहाँ नवधा चौक के पास । गांव पर आने वाली विपत्तियों, विघ्न-बाधाओं का रास्ता रोके, ठाकुरदेव बस्ती की सीमा पर घोड़ाधार व हरदेलाल, दो अन्य देवताओं के साथ एक चबूतरे में माने-पूजे जाते हैं। पहले कोई भी यहां से जूता पहने या वाहन पर सवार होकर नहीं गुजरता था और किसी प्रकार से इस थान का परोक्ष अपमान करने से भी प्रत्येक ग्रामवासी या ग्राम में प्रवेश करने वाला बचता था।

                   
                            लोगों का मानना है कि जो भी बाहरी प्रकोप आता है, उसे ठाकुर देवता रोकते हैं और गांव में कोई भी बाधा आने वाली होती है तो देवता बता देते हैं कि गांव मे बाधा आने वाली है. ये बता देते हैं कि इससे बचकर रहना. उनके बताए नियम का लोग पालन करते हैं. ठाकुर देवता की जात्रा को गांव बनाना भी कहते हैं, क्योंकि इसके बाद गांव में घर-घर की देवी देवता की जात्रा या बोड़ मनाया जाता हैं. घर के मुखिया और बैगा अपने- अपने घर में अपने देवी-देवता की पूजा अर्चना करते हैं.


                                 कैसे होती है पूजा
पूजा की आवश्यक सामग्री में नारियल, धूपबत्ती, दिया, नींबू, चावल, तेल, धान, मुर्गी या मुर्गा, बकरा, दूध, महुआ दारू आदि गिने जाते हैं. उपवास मे पांच या सात या ग्यारह लोग ठाकुर देव के स्थान में रात को रुकते हैं. 

                          ठाकुर देवता की पूजा के लिए एक दिन पहले जाकर ठाकुर देवता के स्थान में बैगा उपवास रखा जाता है. बैगा के साथ गांव वाले भी जाते हैं. देव स्थान को साफ सफाई कर गोबर से लिपाई की जाती है और सुबह ठाकुर देवता की पूजा-अर्चना करते हैं. चावल की पूंजी या कुड़ी बनाकर उसमें दीप को रखके जलाते हैं. दीप के पास फिर तीन कुड़ू या पूंजी बनाते हैं और उसके ऊपर नींबू रखते हैं. जिस मुर्गी या बकरे की बलि देते हैं उसे दाना चबाना पड़ता है. अगर कुछ कारण से मुर्गी या बकरी दाना नहीं उठाता तो जब तक वहां के विधि का पता नहीं चल जाता तब तक बैगा देवता से बात करता रहता है.
                        

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