आरक्षण बहुत सही गणित है ,जरा ध्यान दे हमारे गणित पर ।

आरक्षण का गणित: एक तार्किक दृष्टिकोण

साथियो, आरक्षण का मुद्दा हमारे समाज में बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। इसे समझने के लिए आइए एक सरल उदाहरण से इसे परिभाषित करें। यह गणित केवल तथ्य को समझाने के लिए है, ताकि हम इसकी गहराई को जान सकें।

उदाहरण:

माना कि 100 व्यक्ति हैं, और इन 100 व्यक्तियों को खाने के लिए 100 रोटियां उपलब्ध हैं। अब, देखते हैं कि यह वितरण कैसे होता है:

  1. पिछड़ी जाति (OBC): 60 व्यक्तियों के लिए केवल 27 रोटियों की व्यवस्था है।
  2. अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST): 25 व्यक्तियों के समूह को 22.5 रोटियां दी जाती हैं।
  3. सामान्य वर्ग (GENERAL): 15 व्यक्तियों के लिए शेष 50 रोटियां बचती हैं।

लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब सामान्य वर्ग के भीतर 3% ब्राह्मण जाति के कुछ बेहद शक्तिशाली लोग 50 रोटियों में से 45 रोटियां खा जाते हैं।

अब, सामान्य वर्ग के बाकी 12 लोग केवल 5 रोटियों पर जीवनयापन करने के लिए मजबूर हैं। यही कारण है कि सामान्य वर्ग के जाट, मराठा, लिंगायत, पटेल या पाटीदार समुदाय अपने लिए OBC के 27 रोटियों में हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं।

वर्तमान समस्या:

  1. OBC के 60 लोग वैसे ही 27 रोटियों पर गुजारा कर रहे हैं। ऐसे में, वे अपनी पहले से सीमित रोटियों को जाट, मराठा और लिंगायत समुदाय के साथ बांटने के लिए तैयार नहीं हैं।
  2. 50% आरक्षण की सीमा कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई है। लेकिन यह सीमा उन समुदायों के लिए नाकाफी है, जो अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं।

समस्या का समाधान:

इस समस्या का केवल एक ही समाधान है: आरक्षण को सभी जातियों की संख्या के अनुपात में बांटा जाए। इससे हर समुदाय को उनका अधिकार मिलेगा, और किसी को भूखा नहीं रहना पड़ेगा।

  1. आरक्षण की सीमा को बढ़ाना: कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा को लांघा जाए।
  2. समान वितरण: जाट, मराठा, लिंगायत के साथ-साथ सभी जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।
  3. एकजुटता: सभी पिछड़ी जातियों को एक मंच पर आना होगा। इसमें जाट, गुर्जर, अहीर, यादव, गडरिया, सुनार, लोहार, कुम्हार, कश्यप, निषाद, कुशवाहा, सैनी, माली, मराठा, लिंगायत, पटेल आदि शामिल हैं।

मुख्य बिंदु:

  • 3% ब्राह्मण जाति के लोगों को चाहिए कि वे अपने हिस्से की रोटियों को संतुलित करें। अगर ये केवल 3 रोटियां खाकर जीना सीख जाएं, तो समाज में कोई भी भूखा नहीं रहेगा।
  • समान अधिकार: सभी जातियों को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए।
  • आरक्षण का पुनःसंरचना: समाज में निष्पक्षता लाने के लिए आरक्षण प्रणाली का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।

निष्कर्ष:

यह आवश्यक है कि हम आरक्षण को केवल एक सुविधा के रूप में न देखें, बल्कि इसे समानता और न्याय का माध्यम मानें। यदि इस गणित को सही ढंग से समझा जाए और इसे लागू किया जाए, तो यह समाज के हर वर्ग के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

"आरक्षण का गणित अभी समझिए, क्योंकि इससे आसान उदाहरण नहीं मिलेगा।"

अगर यह लेख आपको उपयोगी लगे, तो इसे ज्यादा से ज्यादा SC/ST और OBC समुदाय के साथ साझा करें। जागरूकता ही समानता की दिशा में पहला कदम है।

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