पहांदीपारी कुपार लिंगो
हमारे आदि धर्मगुरू थे, जिन्होने प्रकृती के न्याय व्यवस्था, नियमों और नैतिक मूल्ययों पर आधारित आदर्श गोंड समुदाय कि स्थापना किया था !
उन्होने अपने शिष्यो और मानव समाज को बताया है कि सुख और शांती अकेला मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता, मानव समाज में रहकर मनुष्य को सुख और शांती कि प्राप्ती हो सकती है ! इसकी प्राप्ती एक -दुसरे कि सेवा करके हि उपलब्ध हो सकती है ! आंत : प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है की अपने मन तथा वाणी से दुसरो को सुख -शांती प्रदान करनेवाले कार्य करने के लिये तत्पर राहना चाहिये ! इसी प्रकार की शिक्षा की निव रखकर गुरु लिंगो ने अपने चार (4) प्रमुख शिष्यो...
(1)कोलासुर
(2)हिराज्योती
(3) मानको सुंगाल तथा
(4) तुरपोराय को गोंडी धर्म का प्रचार प्रसार करने संपूर्ण "गोंडवाना" राज्य में भेजा गया ! उस समय गोंडवाना गणराज्य के अधिपती संभू शेक ने अपने राज्य में गोंडी धर्म को कोया पूनेम को राष्ट्र धर्म का दर्जा दिया है ! मन में निष्काम तथा निष्पाप सेवा भावना के लिये कार्य कारण में मूलमंत्र को "जय सेवा " के रूप में प्रचारित किया गया जय सेवा का अर्थ है की सेवा भाव की सदा जय हो ! याने हर् वेक्ती में सेवा भावना की निर्माण हो यह जय सेवा गोंडी कोया पूनेम का दर्शन है....!
*जय सेवा जय रावेन जय गोंडवाना..... .......🖊 🌹🙏🙏 🌹 तिरुमाल, श्याम
मुंगेली
बहुत अच्छा है
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