एक खत माहिसासुर की अर्न्तआत्मा से - - ~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana

एक खत माहिसासुर की अर्न्तआत्मा से - -

एक खत माहिसासुर की अर्न्तआत्मा से - - - - -





      इसमें कोई शक नहीं कि हमारे आदिवासी समाज ने ही महिलाओं को सबसे ज्यादा अधिकार और आजादी प्रदान किए हैं क्योंकि महिलाओं का सम्मान करना हमारी सदियों पुराने  से धनी संस्कृति है। माना जाय तो हमारे पूर्वज नंगे बिना कपड़े के भी थे तो कभी किसी ने किसी का बलात्कार नहीं किया, बलात्कार तो दूर हाथ तक न उठाने की सौगंध लेते थे। इसके उदाहरण हमारे जननायक महपुरूष माहिसासुर थे।

जय महिषासुर


ये अलग बात है कि यही समर्पण सोच ने उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी, लेकिन उन्होंने अन्ततः साबित कर ही दिया कि हम आदिवासी महिलाओं का कितना सम्मान करते हैं, चाहे वह अपना दुश्मन ही क्यों न हो। हमारे पूर्वजों ने सोहराय जैसे त्योहार भी महिलाओं(सोहराय नामक कुँवारी लड़की के नाम पर ) के नाम पर सृजित किया था।



 दहेज की बात की जाय तो,गैर आदिवासियों के विपरीत पुरुष वर्ग से लिया जाता  है। इस तरह से तमाम रीति रिवाजों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हम महिलाओं को सम्मान देने में अग्रणी रहे हैं,

         लेकिन आए दिन महिलाओं पर शारीरिक और  मानसिक (बलात्कार ,डायन प्रथा जैसे घिनौने अपराध )अत्याचारों में हुई बढ़ोतरी से भी हम यह कह सकते हैं कि हम अपने पूर्वजों के बता- बताए हुए रास्ते से भटक और उनकी परंपरा को निभाने में कहीं न कहीं चूक कर रहे हैं। जो आदिवासी की नई पीढ़ी के लिए बहुत ही चिन्ता का विषय है,इस बात को हमें स्वीकारना  होगा।



 इसके लिए हमें समाज को जागरूक करते हुए जरूरी कदम उठाना होगा। महिलाओं को सम्मान दिए बिना हम कभी भी आगे नही बढ़ सकते।साथ ही साथ महिला वर्ग को भी परिवारिक जिम्मेदारियाँ के अलावे सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।तभी हम माहिसासुर के वो सपने, वह समाज, वह सभ्यता जिनको यूरेशियन ने छत- विछत कर दिया को फिर से साकार और निर्मित  कर सकते हैं


          जय आदिवासी, जय माहिसासुर।

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