एक खत माहिसासुर की अर्न्तआत्मा से - -

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जय महिषासुर


हमारे आदिवासी समाज की संस्कृति में महिलाओं का विशेष स्थान और अधिकार हमेशा सर्वोपरि रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी परंपरा ने महिलाओं को न केवल सम्मानित किया बल्कि उन्हें समाज में समानता का स्थान भी प्रदान किया। आदिवासी समाज ने यह सिद्ध किया है कि महिलाओं के प्रति सम्मान और स्वतंत्रता का विचार हमारे मूल्यों का अभिन्न हिस्सा है।

हमारे पूर्वज, जिनके पास साधारण जीवन जीने की परंपरा थी, उनकी संस्कृति में महिलाओं के प्रति इतनी गहरी आदर भावना थी कि उन्होंने कभी किसी का अपमान नहीं किया। बलात्कार जैसी घटनाएं तो दूर, उन्होंने महिलाओं पर हाथ तक उठाने से हमेशा परहेज किया। हमारे महान जननायक माहिषासुर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। माहिषासुर ने अपने आचरण और मूल्यों से यह साबित किया कि आदिवासी समाज महिलाओं को कितना महत्व देता है, चाहे वह अपना विरोधी ही क्यों न हो।

हमारे त्योहार भी इस बात की गवाही देते हैं। उदाहरण के लिए, सोहराय त्योहार, जो एक कुंवारी लड़की के नाम पर सृजित किया गया था, महिलाओं के प्रति सम्मान और समर्पण को दर्शाता है। इसके अलावा, हमारे समाज की परंपराएं, जैसे दहेज प्रथा में महिलाओं पर बोझ डालने के बजाय पुरुषों से दहेज लिया जाना, यह सिद्ध करती हैं कि आदिवासी समाज हमेशा से महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान को प्राथमिकता देता आया है।

लेकिन वर्तमान समय में, हमारे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार और हिंसा, जैसे बलात्कार और डायन प्रथा, इस बात का संकेत हैं कि हम अपने पूर्वजों के बताए मार्ग से भटक गए हैं। यह हमारे समाज के लिए अत्यंत चिंता का विषय है। माहिषासुर के आदर्श और हमारी परंपराएं हमें यह सिखाती हैं कि महिलाओं को सम्मान दिए बिना समाज का विकास संभव नहीं है।

आज हमें अपने समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि केवल कानून और नियम पर्याप्त नहीं हैं; हमें अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाना होगा। महिलाओं को परिवार के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारियों में भी शामिल करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। इससे वे सशक्त बनेंगी और समाज को एक नई दिशा दे सकेंगी।

महिलाओं का सशक्तिकरण केवल उनका सम्मान बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की समग्र प्रगति का आधार भी है। हमारे पूर्वजों ने जो आदर्श स्थापित किए थे, उन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। माहिषासुर के सपने को साकार करने और उस सभ्यता का निर्माण करने के लिए, जो कभी बाहरी आक्रमणों से छिन्न-भिन्न हो गई थी, हमें एकजुट होकर प्रयास करने होंगे।

माहिषासुर के आदर्श हमें सिखाते हैं कि एक सशक्त और सभ्य समाज वही है, जो महिलाओं को सम्मान और समानता का अधिकार दे। हमें अपनी परंपराओं को याद करते हुए उन्हें आधुनिक समाज में लागू करना चाहिए। यह केवल आदिवासी समाज के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण बन सकता है।

अतः, हमें अपने मूल्यों की ओर लौटकर समाज को जागरूक और सशक्त बनाना होगा। महिलाओं को उनके अधिकार देने और उन्हें समाज में उचित स्थान प्रदान करने के बिना, हम अपने समाज को प्रगति के मार्ग पर आगे नहीं ले जा सकते। माहिषासुर के आदर्शों को अपनाकर हम एक बेहतर और समानता पर आधारित समाज का निर्माण कर सकते हैं।

जय आदिवासी, जय महिषासुर।

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