तो राक्षस आप भी हो👺! ~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana

तो राक्षस आप भी हो👺!

बैठक में टी॰वी॰ चल रहा था, जिस पर रामायण आ रही थी।

मेरे मित्र काफी गौर से रामायण देख रहे थे।

तभी रामायण में एक दृश्य ऐसा आता है जब रामायण के मुख्य पात्र राम किसी राक्षस को मारते हैं।

तभी मेरे दोस्त अशोक यादव मुझसे कहते हैं।

*लो हो गया इस दैत्य 'राक्षस' का भी काम तमाम*

अब इतना सुनते ही मैंने उनसे कहा श्रीमान इतना खुश होने की क्या आवश्यकता है?

तभी मेरे मित्र अशोक यादव बोलते हैं, मैं इसलिए खुश हो रहा हूँ की राम ने *राक्षस* का अंत किया।

तभी मैंने कहा 'तो फिर इसमें खुश होने की क्या बात? 

*राक्षस तो आप भी हो।*

अशोक जी थोड़े गुस्से में, *आपने हमें राक्षस क्यों कहा?*

हम राक्षस थोड़े ही हैं? *मैंने कहा अशोक जी आप राक्षस नही तो और क्या हो?*

*आप भी राक्षस और आपका बेटा भी राक्षस?*

तभी अशोक जी गुस्से से 'लथपथ' आग-बबुला होकर बोले, *हम आपकी इज्जत करते हैं इसका मतलब यह नही की आप हमारी सरेआम बेईजत्ती करेगो।*

हमें आपसे यह उम्मीद नही थी। मैंने कहा अशोक जी मैंने आपको गलत ही क्या बोला?

मैं तो अभी भी आपको और आपके बेटे को राक्षस कहुंगा चाहे आप मुझे कुछ भी कहो, या मेरे बारे में कुछ भी सोचो। आप कहो तो मैं यह साबित भी कर सकता हूँ की आप राक्षस हो।

तभी अशोक जी कहने लगे आप कैसे साबित करेगो?

*मैंने पूछा आपकी जाति क्या है?*

अशोक जी ने कहा हम *अहीर' हैं।*

मैंने कहा हिंदू धर्म में कितने वर्ण होते हैं।

अशोक जी ने कहा *चार*

मैंने कहा आप *ब्राह्मण* हो ?

अशोक जी का जवाब - *नही*

मैंने कहा आप *वैश्य* हो ?

अशोक जी का जवाब - *नही*

मैंने कहा आप *क्षत्रीय* हो ?

अशोक जी का जवाब - *नही*

मैंने कहा अब कौन सा वर्ण बचा?

*अशोक जी ने कहा 'शुद्र'*

मैंने कहा तो फिर आप *शुद्र* हो।

अशोक जी गुमसुम हो गए, तभी उनकी पत्नी *श्रीमती जी' चाय लेकर आईं, मैंने तुरंत उनकी पत्नी से कहा, भाभी जी आपके बेटे का अभी नामकरण हुआ था*, क्या आप मुझे अपने बेटे की *जन्मपत्रि-कुंडली* दिखा सकती हैं?

अशोक जी की पत्नी ने कहा, हाँ जरूर क्यों नही, आप चाय पीजिए मैं अभी लाती हूँ।

अब हम लोग चाय पीने लगे, *तभी उनकी पत्नी जन्मपत्रि-कुंडली लेकर आ गईं, मैंने जन्मपत्रि-कुंडली अपने हाथ में ना लेकर उनकी पत्नी से कहा, इसे अशोक जी को दीजिए।*

अशोक जी कहने लगे की मुझे क्यों?

*मैंने कहा अशोक जी जन्मपत्रि-कुंडली में सब कुछ लिखा होता है।*

अब आप अपने बेटे की जन्मपत्रि-कुंडली में देखकर यह बताइए की उसका *वर्ण* क्या लिखा है?

अशोक जी धीमी आवाज में बोले *शुद्र* 

तभी मेरे चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई,

मैंने कहा, अशोक जी अब आप जन्मपत्रि-कुंडली में देखकर यह बताइए की आपके बेटे को किस *गण* में रखा गया है।
अशोक जी शांत मुद्रा में, बहुत देर तक कुछ नही बोलो, मैंने कहा अशोक जी क्या हुआ? आप तो शांत हो गए, क्या जन्मपत्रि- कुंडली में लिखा आपको समझ नही आ रहा?

लाईए मैं पढ़कर बताता हूँ, तभी वह बोले की *गण राक्षस*लिखा हुआ है।

दोस्तों अब मैं ठहाके मारकर हँसने लगा और बोला की अभी तो *आप राक्षस के मरने पर खुश हो रहे थे*, और इतनी जल्दी जन्मपत्रि-कुंडली में खुद के *बेटे को राक्षस देखकर शांत हो गए,*
ऐसा क्यों?

अशोक जी यह जन्मपत्रि-कुंडली मैंने या आपने नही बनाई, यह एक *ब्राह्मण* ने बनाई है।

जिस वर्ण ने *शुद्रोँ* को हमेशा राक्षस ही कहा है,

*अशोक जी जातिवाद-भेदभाव तो 'शुद्र' वर्ण के बच्चों को साथ जन्म से ही शुरू हो जाता है,*

आप *शुद्र-वर्ण* के अधीन आने वाली किसी भी जन्मपत्रि-कुंडली को उठाकर देख लीजिए *गण राक्षस ही मिलेगा।*

क्योंकि इस एक विशेष वर्ण ने *शुद्र वर्ण' को हमेशा राक्षस-खलनायक* के रूप में ही दिखाया है। और स्वंय को *नायक* के रूप में प्रस्तुत किया है।

क्या आपको अभी भी खुद के राक्षस होने पर शक है?

*इतने उदाहरण देने के बाद भी समाज में अधिकतर लोग पाखंड के  दल दल में  फंसे हुए है। कब जागेगा हमारा समाज .....?

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