रण्ड पाठ - 2 (अध्याय - 2)

                           रण्ड पाठ - 2


                        सर्वशक्तिमान फड़ापेन (बड़ादेव) महाव्रत पूजा प्रक्रिया को समझाते हुए गुरु विक्रम देव ने कहा हे , राजन यह पूजा सम सगा गोत्र वालों को विषम सगा गोत्र वालों के द्वारा एवं विषम सगा गोत्र वालों को समसगा गोत्र वालों से अपना कोया पुनेम गुरु या प्रचारक से सम्पन्न कराना उत्तम माना गया है। 

               इस महाव्रत पूजा के दिन श्रवण करने वाले दम्पत्ति व सगाजनों को चाहिए कि उस दिन निराहार रहकर सत्य नेम से फड़ापेन (बड़ादेव) में चित्त लगाकर दिवस बिताये पूजा के समय सात रंगों का प्रयोग कर चौक के दो भाग करे, प्रथम बाएँ में फड़ापेन शक्ति के नाम से (सल्लार गांगरा) तथा ७५० कुल गोत्रों सहित "जयसेवा मंत्र" अंकित करें। 

           द्वितीय दो भाग में सातों सगा देवताओं का प्रतीक अलग-अलग आड़े पट्टियों रंगों से भड़े। तत्पश्चात चौक के चारों कोने पर कोया पुनेम गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो के चार प्रमुख धर्म केन्द्रों के नाम पर चार कलश जलावे तथा पाँचवां कलश बड़ादेव के नाम से जलावें । 

           पूजा प्रारम्भ होने पर कोया पुनेम, गुरुओं भुमकाओं व सातों सगा देवताओं सहित फड़ापेन सर्व शक्तिमान बड़ादेव का आव्हान करें। बाद में गौर कलश व बारह गांगरो सहित पंच तत्वों की (पृथ्वी, अग्नि, जल, पवन, आकाश) की अर्चना कर फूल, फल, टूब, हल्दी, नारियल, गुड़, चिरौंजी आदि चढ़ावें तथा आगे का महिमा पाठ का श्रवण करना चाहिए। पूजा के अंत में फड़ापेन सर्वोच्च शक्ति बड़ादेव की आरती कर रार, गुगुल कीधूनी देवें । 



            पूजा समाप्त कर सभा जनों सहित प्रसाद ग्रहण करें। तथा उस रात्रि को कोया पुनेमी एक साथ बैठकर भजन पूजन करने में समय बितावें ।


        "श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" दूसरा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥ 

            ।। माता कली कंकाली की जय, ।।

।।  गोंडी गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो की जय ।।


मूंद पाठ - 3


             सर्वशक्तिमान फड़ापेन महाव्रत पूजा को समझकर राजा वीरशाह गुरु विक्रमदेव सहित समस्त प्रजा तथा समाज सेवकों व धर्माचार्यों को "दियागढ़" के परम रम्य पुण्य सत्नित्ना महागोंदा के तट पर फड़ापेन सर्वोच्च शक्ति फड़ापेन बड़ादेव का महाव्रत पूजा के लिये आमंत्रित किया । 


पूजा प्रारम्भ कर गुरु विक्रम देव ने कोया पुनेमी मंत्रों द्वारा समस्त देवी-देवताओं की स्तुति कर सभी श्रद्धालु भक्तों को पुनेमी आस्था के अनुरूप फड़ापेन शक्ति का दर्शन कराया। तभी राजा के हृदय में यह लालसा उत्पन्न हुई, वे बोले हे गुरुदेव अब फड़ापेन की महिमा एवं स्वरूप के बारे में बताइए किस प्रकार जीवों का जगत में जन्म, पालन एवं संहार होता है। व कोवा पुनेम में कौन-कौन से बंदनीय तत्व होते हैं। तथा संक्षेप में यह भी बताईये कि फड़ापेन शक्ति के चमत्कार के कारण सगा समाज में कौन-कौन सी प्रमुख आस्थायें हैं।


      तब गुरु विक्रम देव ने कहा हे राजन आपने फड़ापेन की महिमा एवं कोया पुनेम के गूढ़ रहस्य को जानने की इच्छा व जन कल्याण के लिये की है, सो ध्यान से सुनो -

                फड़ापेन सर्व शक्तिमान बड़ादेव निर्गुण निरंकार, अजन्म: अलख, अविनाशी, अनंत, अजर अमर, आदि अनंत-चराचर के स्वामी समदर्शी कण-कण में विद्यमान एवं घट-घट के वासी व अन्तर्यामी हैं। उनकी माया से ही सृष्टि की उत्पत्ति चर-अचर, जीव-जन्तुओं का संहार होता है। योगी जन निरंतर ध्यान लगाये रहते हैं। फिर भी उस फड़ापेन शक्ति की महिमा को समझ नहीं पाते, उन्हीं की कृपा से प्राकृतिक शक्ति के सल्लार और गंगरा प्रजनन तत्वों के क्रिया प्रक्रिया से ही जीव जगत का निर्माण होता है। 


              सल्ला शक्ति सत उत्तेजन करता है और गांगरा उत्तेजित होकर जगत का निर्माण करती है। इस प्रकार समस्त जीव जगत फड़ापेन के प्राकृतिक शक्ति के सल्ला (पुरुष वर्ग) और गांगरा (स्त्री वर्ग) रूपी (सम+विषम) (पूना+ऊना) एवं धन ऋण परस्पर विपरीत पिता और माता की क्रिया प्रक्रिया से जन्म लेते हैं। इसके अलावा जीव जगत की उत्पत्ति का अन्य मार्ग ही नहीं है। अतः कोया पुनेम में माता-पिता को ईश्वर तुल्य पूज कर प्रत्येक सगा समाज को हृदय से सेवा करना चाहिए। तभी मानव प्राणी की भलाई है। अन्यथा जगत में उनका जन्म लेना व्यर्थ है ।


"श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" तीसरा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥



1. रण्ड - 2 ( अध्याय - २)


2मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )


3. नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)


4. सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)


5. सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)


6. येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )


7. परम शक्ति फड़ापेन की कथा

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