मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )
मूंद पाठ - 3
सर्वशक्तिमान फ़ढ़ापेन महाव्रत पूजा एक अद्वितीय आध्यात्मिक आयोजन है, जिसमें राजा वीरशाह ने गुरु विक्रमदेव सहित समस्त प्रजा, समाज सेवकों और धर्माचार्यों को "दियागढ" के पुण्यस्थल, महागोंदा नदी के तट पर आमंत्रित किया। इस आयोजन का उद्देश्य फ़ढ़ापेन बड़ादेव की महिमा का बखान और उनकी शक्ति के दर्शन कराना था।
पूजा का शुभारंभ गुरु विक्रमदेव ने कोया पुनेमी मंत्रों के उच्चारण से किया। इन मंत्रों के माध्यम से उन्होंने समस्त देवी-देवताओं की स्तुति की और श्रद्धालुओं को फ़ढ़ापेन शक्ति के दर्शन कराए। पूजा के दौरान, राजा वीरशाह के मन में यह लालसा उत्पन्न हुई कि वे फ़ढ़ापेन की महिमा, स्वरूप, और सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को विस्तार से जानें। उन्होंने गुरु से यह भी पूछा कि कोया पुनेम के अंतर्गत कौन-कौन से बंदनीय तत्व आते हैं और समाज में फ़ढ़ापेन शक्ति के चमत्कार से कौन-कौन सी आस्थाएँ प्रमुख हैं।
गुरु विक्रमदेव ने राजा वीरशाह और उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा, "हे राजन, आपने फ़ढ़ापेन की महिमा और कोया पुनेम के रहस्यों को जानने की इच्छा जनकल्याण के लिए की है, जो अत्यंत प्रशंसनीय है। ध्यानपूर्वक सुनें।"
फ़ढ़ापेन सर्वशक्तिमान बड़ादेव हैं, जो निर्गुण, निराकार, अजन्मा, अलख, अविनाशी और अनंत हैं। वे चराचर जगत के स्वामी, समदर्शी, कण-कण में विद्यमान और अंतःकरण के वासी हैं। उनकी माया से ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार होता है। योगीजन निरंतर ध्यान करते हैं, फिर भी उनकी महिमा को पूरी तरह से समझ नहीं पाते। फ़ढ़ापेन की कृपा से ही प्राकृतिक शक्तियाँ, जैसे सल्लार और गांगरा, सृष्टि के निर्माण में सक्रिय होती हैं।
सल्ला शक्ति (पुरुष तत्व) जगत को सत प्रेरणा देता है, जबकि गांगरा शक्ति (स्त्री तत्व) प्रेरित होकर सृष्टि की संरचना करती है। इन दोनों शक्तियों के समन्वय से ही जीव-जगत की उत्पत्ति होती है। गुरु ने समझाया कि यह प्रक्रिया पिता (सल्ला) और माता (गांगरा) के परस्पर पूरक क्रिया-प्रक्रिया से संपन्न होती है।
फ़ढ़ापेन शक्ति के इस चमत्कारिक सिद्धांत के आधार पर, कोया पुनेम में माता-पिता को ईश्वर तुल्य मानने की परंपरा है। हर मानव को अपने माता-पिता की सेवा और आदर करना चाहिए। यही सगा समाज का मूल धर्म और आधार है। जो व्यक्ति इस धर्म का पालन नहीं करता, उसका जन्म लेना व्यर्थ है।
गुरु विक्रमदेव ने आगे कहा, "फ़ढ़ापेन की महिमा का वर्णन करना मानव बुद्धि से परे है। उनकी माया से ही प्रकृति की प्रत्येक प्रक्रिया संचालित होती है। उनके आशीर्वाद से ही समाज में आस्था और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है।"
इस महाव्रत पूजा ने समस्त उपस्थित जनसमूह को न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा दी, बल्कि उन्हें सगा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भी बोध कराया। गुरु विक्रमदेव के उपदेशों से सभी को यह समझ में आया कि सगा समाज की भलाई और सृष्टि के नियमों का पालन करना ही मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य है।
राजा वीरशाह ने गुरु के उपदेशों को सुनकर अपनी प्रजा को यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति को फ़ढ़ापेन की महिमा का स्मरण कर अपने जीवन को धर्म, सेवा और आस्था के मार्ग पर आगे बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार, फ़ढ़ापेन महाव्रत पूजा ने न केवल धार्मिक वातावरण का सृजन किया, बल्कि समाज को एकजुटता और परस्पर सहयोग का संदेश भी दिया।
"श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" तीसरा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥
2. मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )
3. नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)
4. सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)
5. सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)
6. येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )
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