नालुंग पाठ - 4

                         मूंद पाठ - 3



             सर्वशक्तिमान फड़ापेन महाव्रत पूजा को समझकर राजा वीरशाह गुरु विक्रमदेव सहित समस्त प्रजा तथा समाज सेवकों व धर्माचार्यों को "दियागढ़" के परम रम्य पुण्य सत्नित्ना महागोंदा के तट पर फड़ापेन सर्वोच्च शक्ति फड़ापेन बड़ादेव का महाव्रत पूजा के लिये आमंत्रित किया । 




पूजा प्रारम्भ कर गुरु विक्रम देव ने कोया पुनेमी मंत्रों द्वारा समस्त देवी-देवताओं की स्तुति कर सभी श्रद्धालु भक्तों को पुनेमी आस्था के अनुरूप फड़ापेन शक्ति का दर्शन कराया। तभी राजा के हृदय में यह लालसा उत्पन्न हुई, वे बोले हे गुरुदेव अब फड़ापेन की महिमा एवं स्वरूप के बारे में बताइए किस प्रकार जीवों का जगत में जन्म, पालन एवं संहार होता है। व कोवा पुनेम में कौन-कौन से बंदनीय तत्व होते हैं। तथा संक्षेप में यह भी बताईये कि फड़ापेन शक्ति के चमत्कार के कारण सगा समाज में कौन-कौन सी प्रमुख आस्थायें हैं।




      तब गुरु विक्रम देव ने कहा हे राजन आपने फड़ापेन की महिमा एवं कोया पुनेम के गूढ़ रहस्य को जानने की इच्छा व जन कल्याण के लिये की है, सो ध्यान से सुनो -


                फड़ापेन सर्व शक्तिमान बड़ादेव निर्गुण निरंकार, अजन्म: अलख, अविनाशी, अनंत, अजर अमर, आदि अनंत-चराचर के स्वामी समदर्शी कण-कण में विद्यमान एवं घट-घट के वासी व अन्तर्यामी हैं। उनकी माया से ही सृष्टि की उत्पत्ति चर-अचर, जीव-जन्तुओं का संहार होता है। योगी जन निरंतर ध्यान लगाये रहते हैं। फिर भी उस फड़ापेन शक्ति की महिमा को समझ नहीं पाते, उन्हीं की कृपा से प्राकृतिक शक्ति के सल्लार और गंगरा प्रजनन तत्वों के क्रिया प्रक्रिया से ही जीव जगत का निर्माण होता है। 




              सल्ला शक्ति सत उत्तेजन करता है और गांगरा उत्तेजित होकर जगत का निर्माण करती है। इस प्रकार समस्त जीव जगत फड़ापेन के प्राकृतिक शक्ति के सल्ला (पुरुष वर्ग) और गांगरा (स्त्री वर्ग) रूपी (सम+विषम) (पूना+ऊना) एवं धन ऋण परस्पर विपरीत पिता और माता की क्रिया प्रक्रिया से जन्म लेते हैं। इसके अलावा जीव जगत की उत्पत्ति का अन्य मार्ग ही नहीं है। अतः कोया पुनेम में माता-पिता को ईश्वर तुल्य पूज कर प्रत्येक सगा समाज को हृदय से सेवा करना चाहिए। तभी मानव प्राणी की भलाई है। अन्यथा जगत में उनका जन्म लेना व्यर्थ है ।




"श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" तीसरा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥ 






 नालुंग पाठ - 4


                कोया पुनेम के बंदनीय तत्वों को समझाते हुए गुरु विक्रमदेव ने कहा हे राजन सगा समाज, गोठूल, पेनकड़ा, पुनेम और मुठवा ये पाँच प्रमुख वंदनीय तत्व हैं जिनको मानकर सगा समाज की सेवा करना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। सम्पूर्ण सगा समाज बारह सगा शाखाओं में विभाजित है । सम-विषम गुण संस्कार धारक शाखाओं में जैसे -


(1) सगा - वैवाहिक संबंध प्रस्थापित करना ही प्रथम वन्दनीय तत्व है


(2) गोठूल - वह शिक्षा केन्द्र हैं, जिसमें बालक-बालिकाएँ शिक्षा प्राप्त कर सगा समाज की सेवा हमेशा करते रहते हैं। यह दूसरी बंदनीय तत्व है ।


(3) पेनकड़ा - यह वह शक्ति स्थल है, जहाँ परसा पेन शक्ति की उपासना की जाती है जो चराचर जगत की नियामक शक्ति परसा पेन है। जिसके (सल्ला गांगरा) तत्व रूपी शक्ति परसा पेन शक्ति को पेनकड़ा में सगाजनों द्वारा पूजा जाता है। यह तीसरा बन्दनीय तत्व है। मनुष्य की बौद्धिक शक्ति प्राकृतिक देन है। जिस प्रकार मनुष्य का मानसिक, बौद्धिक तथा शारीरिक विकास के साथ-साथ धार्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है इसी तरह सगा पुय सर्री, सगा पारी सर्री, सगा सेवा सर्री, सगा मोद सर्री आदि है ।


 पुनेम - सगाजनों की सेवा करने के लिये (मुन्द मुंशूल) वन्दीय सत्य मार्ग है। मुठवा कोया पुनेम का पालन कर उसकी जानकारी सगाजनों को देने वाला होता है।


               (5) गुरु (मुठवा या भुमका) - की सेवा भी सगा समाज का वन्दनीय तत्व माना गया है । जिसके द्वारा सगा समाज को सद्ज्ञान प्राप्त होता है और धर्मार्थ कार्य करने में सफलता प्राप्त कर सिद्धि को प्राप्त करता है ।


"श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" चौथा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥ 

1. रण्ड - 2 ( अध्याय - २)


2मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )


3. नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)


4. सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)


5. सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)


6. येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )


7. परम शक्ति फड़ापेन की कथा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गोंड वंश की गोत्रावली

🔆 ध्रुव गोंड गोत्र ज्ञान माला 🔆

विभिन्न गोंडों की गोत्रावली आप की जानकारी हेतु