सांयुग पाठ -5
एक समय की बात है जब सोना माता गर्भावस्था में थीं। तब उसे कोंडवारी (केवलार भाजी) वनस्पति की कोमल कलियों की तरकारी खाने की इच्छा हुई, लगातार एक सप्ताह तक तरकारी खाने के बावजूद भी माता सोना की इच्छा पूरी नहीं हुई।
तब वह एक दिन अपने सेविकाओं सहित कोडवारी (केवलार भाजी) की कोमल कलियाँ तोड़ने के लिए पास के जंगल में चली गई रास्ते में पैर फिसल जाने के कारण वह जमीन पर गिर पड़ी तथा उदर में झटका लगने से वह दर्द के कारण तड़पने लगी।
उसे तड़पते हुए देखकर सेविकाओं ने कोड़वारी (कोयलार) भाजी की कोमल कलियों की सेज बिछाकर उसी में लिटा दीं। ठीक उसी वक्त सर्वशक्तिमान फड़ापेन बड़ादेवजी की कृपा से सम्पूर्ण आकाश काले-काले मेघों से छा गया। घनघोर घटा के बीच मेघ गर्जने लगे और बिजली चमकने लगी।
सायं-सायं कर पवन चारों ओर बहने लगी । सम्पूर्ण वातावरण डरावना सा हो गया। उसी समय आंखों को चौधिया देने वाली बिजली चमक उठी और जोरदार आवाज से कानों के परदे सुन्न हो गये, चारों ओर एकाएक अंधेरा छा गया। उस गगनभेदी आवाज के साथ ही सोना माता जोर से चिल्ला उठी, उसी चिल्ला उठने की प्रक्रिया में ही उसने एक मनमोहक सुन्दर नवजात कन्या को जन्म दिया और वह बेहोश हो गई।
उस बालिका की आवाज के साथ ही जोरों से बहने वाली हवा रुक गई। तथा डरावना वातावरण सामान्य हो गया। राजमहल में पैदा होने के बजाय कोड़वारी (कोयलार) कलियों की सेज पर अपना प्रथम चरण इस सिंगार द्वीप में रखने के कारण इस कन्या का नाम (कली) रखा गया।
जब उसने जन्म लिया तब उसके ऊपर सूर्यदेव का प्रखर (तेज) प्रकाश न पड़ सके इसलिये प्रकृति ने उसके ऊपर मेघों का आच्छादन से सूर्यदेव के तेज प्रकाश को ढंक लिया। बिजली गरजने की शक्ति महामाया अर्थात देवी शक्ति वाली कन्या थी । यही कन्या (माता कली कंकाली) 33 सगा देवताओं की मात्ता बनी एवं सगा समाज की सेवा कर अन्त में कोयली कछार में बिजली गिरने के कारण परसापेन की परम शक्ति में विलीन हो गईं।
“श्री फडापेन महाव्रत पूजा" पाँचवा पाठ समाप्त ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥
2. मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )
3. नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)
4. सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)
5. सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)
6. येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )
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