सारूंग पाठ - 6
सारूंग पाठ - 6
प्राचीन काल में माता कली कंकाली के 33 कोटी बच्चों से परेशान होकर शंभुशेक ने उन्हें कोयली कछार लोहागढ़ पर्वत गुफा में बारह वर्ष के लिये कैद की सजा सुनाकर उन्हें बंद कर दिया था।
उन्हें उचित मार्ग दर्शन दिलाने के लिये एक परम ज्ञानी महान बौद्धिक तत्ववेत्ता गुरु की आवश्यकता महसूस कर शंभुशेक ने पारी पटोर बिजलीपुरा के निवासी जालकादेव और उनकी
पत्नी हीरा देवी से उनका पुत्र जिसका नाम रूपोलंग था, उसे मांगना चाहा। एक दिन शंभुशेक जालकादेव के घर गये और उसे बताया कि हे जालकादेव तुम्हारा होनहार पुत्र बहुत ही भाग्यशाली और गुणवान है। जिसे मैं अत्यंत शक्तिशाली एवं कोया पुनेम (सगा समाज) का गुरु बनाना चाहता हूँ।
जालकादेव और हीरा देवी शंभुशेक के भक्त थे जिसके कारण उनको पूरा विश्वास हो गया । उन्होंने अपने पुत्र को उनकी गोदी में सौंप दिया। बालक रूपोलंग को शंभुशेक ने पुलसीव राजा के बाग में एक तोया (ऊमर) वृक्ष के नीचे ले जाकर रख दिया और अपने गले का हार अर्थात भुजंग (काला नाग) को उसकी रक्षा के लिये छोड़ दिया।
उसी समय हिर्वामाता आपने बाग में टहलने के लिए सेविकाओं के साथ वहाँ गई थी। तोया (ऊमर) वृक्ष के नीचे उसे एक सुन्दर बालक रोता हुआ दिखाई दिया और एक बहुत बड़ाभुजंग (काला सर्प) बालक के चारों ओर घेरा डालकर फन फैलाये बालक के ऊपर छाया कर रहा था।
उसे देखकर हिर्वा माता आश्चर्य चकित हुई एवं डर के मारे कुछ समय के लिए अपनी आँखे बंद कर जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई। हिर्वामाता ने जब दुबारा उस बालक की ओर आँखे उठा कर देखा, तब वहाँ भुजंग (काला नाग) को न पाक़र वह चकित हो गईं। चारों ओर नजर दौड़ाने पर भी उसे वहाँ कुछ भी दिखाई नहीं दिया ।
बालक जोर-जोर से रो रहा था। तब हिर्वामाता को उसकी हालत देखा नहीं गया । माता हिर्वा के मन में मातृ (माता) प्रेम जागृत हो उठा अंत में बालक के पास जाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया, तब बालक ने रोना बंद कर दिया। उस बालक को लेकर हिर्वा माता , राजमहल में आ गईं। नवजात शिशु के बारे में चमत्कार पूर्ण समाचार सुनकर पुलसीव राजा भी चकित हो गये । उस बालक को सर्वशक्तिमान सर्वोच्चशक्ति फड़ापेन (बड़ादेव जी) का वरदान समझकर राजा ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। शुभ नक्षत्र शुभ लगन के आते ही नामकरण संस्कार का कार्यक्रम आयोजित किया । भुजंग की कुंडली से प्राप्त होने वाला बालक समझकर उसका नाम (कुपार) रखा गया।
यही होनहार रूपोलंग बालक आगे चलकर योग साधना से ज्ञान प्राप्त कर महान तत्ववेत्ता परमज्ञानी बुद्धि के आगर माता कली कंकाली के 33 कोट बच्चों अर्थात् सगा देवताओं के मुक्तिदाता एवं कोया पुनेम (गुरु पहांदी पारी कुपार लिंगो) के नाम से सम्पूर्ण कोयामूरीद्वीप में पूज्यनीय माना गया जिसे आज भी विभिन्न धर्म के मानने वाले लोग अलग अलग रूपों में, नामों में और आकारों में उनकी पूजा किया करते हैं।
पहांदीपारी कुपार लिंगो: कोया पुनेम के आदिगुरु
कुपार लिंगो गोंड समाज के आदिगुरु थे, जिन्होंने कोया पुनेम धर्म की स्थापना कर एक विशिष्ट और संरचित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया। उनके कार्यों और सिद्धांतों ने गोंड समाज को संगठित करने और प्रगति की राह दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा किए गए कार्य निम्नलिखित हैं:
शांतिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का निर्माण:
प्राचीन कुयवा राज्यों में रहने वाले लोग छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटे हुए थे और आपसी संघर्ष करते थे। कुपार लिंगो ने इन्हें सगा सामाजिक व्यवस्था के तहत संगठित किया, जिससे उनके बीच आपसी संघर्ष खत्म होकर शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित हुआ।
प्रकृति का ज्ञान और परसापेन की अवधारणा:
कुपार लिंगो ने प्रकृति की श्रेष्ठतम शक्ति को “परसापेन” (सर्वोच्च शक्ति) के रूप में पहचाना। उन्होंने समझाया कि प्रकृति अनादि और अनंत है, जिसमें केवल परिवर्तन होता रहता है। उन्होंने सल्लां और गांगरा की परस्पर क्रियाओं से प्रकृति चक्र का निर्माण बताया।
सगा सामाजिक संरचना:
कुपार लिंगो ने सामाजिक संरचना को मजबूत बनाने के लिए सम-विषम गोत्र, कुल चिन्ह, और पारी संबंध (वैवाहिक संबंध) की परंपरा विकसित की। यह संरचना समाज में एकता और सद्भाव का प्रतीक बनी।
जय सेवा मंत्र:
कुपार लिंगो ने "जय सेवा" का मूलमंत्र दिया, जिसका अर्थ है सेवा की भावना को सर्वोपरि रखना। उन्होंने मूंदमुन्सूल सर्री (त्रैगुण मार्ग) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो मानसिक, बौद्धिक, और शारीरिक संतुलन को प्रोत्साहित करता है।
प्राकृतिक संतुलन और कुल चिन्ह:
गोंड समाज में 750 कुल गोत्र हैं। प्रत्येक गोत्र के लिए एक पशु, एक पक्षी, और एक वनस्पति को कुल चिन्ह के रूप में निर्धारित किया गया। यह व्यवस्था प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए थी।
गोटूल शिक्षा प्रणाली:
कुपार लिंगो ने गोटूल नामक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की, जहां बच्चों को तीन से अठारह वर्ष की आयु तक नैतिक, शारीरिक, और सामाजिक शिक्षा दी जाती थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज यह परंपरा लुप्त होती जा रही है।
पेनकड़ा की स्थापना:
गोंड समाज के लोगों को एकत्रित होकर सद्विचार प्राप्त करने के लिए कुपार लिंगो ने पेनकड़ा नामक सामूहिक स्थल की स्थापना की। यह आज भी समाज में प्रेरणा और सामूहिक विचार-विमर्श का केंद्र है।
अहिंसा का सिद्धांत:
कुपार लिंगो ने मुंजोक (अहिंसा) का सिद्धांत दिया, जो प्राकृतिक न्याय पर आधारित था। उन्होंने सिखाया कि सभी जीवों के प्रति करुणा और दया का भाव रखना चाहिए।
सत्य मार्ग और सेवा:
कुपार लिंगो ने सगा पूय सर्री, सगा पारी सर्री, सगा सेवा सर्री, और सगा मोद सर्री जैसे विचार प्रस्तुत किए, जो समाज में ईमानदारी और सेवा भाव को प्रोत्साहित करते हैं।
निष्कर्ष:
कुपार लिंगो ने गोंड समाज में त्रिकलाबाधित कोया पुनेमी नीति और सगा सामाजिक संरचना को स्थापित किया। उन्होंने न केवल एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया, बल्कि अपने ज्ञान और सिद्धांतों से मानवता को एक नई दिशा दी। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके दर्शन और सिद्धांतों का अध्ययन कर उन्हें संरक्षित करें और समाज में उनके महत्व को पुनः जागृत करें।
जय सेवा, जय फड़ापेन, जय गोंडवाना!
।। श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा” छटवा पाठ समाप्त ॥ ।। बोलो फड़ापेन की जय ॥
2. मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )
3. नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)
4. सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)
5. सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)
6. येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )
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