येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह ) ~ जय सेवा जय बड़ादेव जय गोंडवाना/ Jai Seva Jai Gondwana

येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )

                          येसंग पाठ - 7


                      बहुत पुरानी बात है कि महाराजा संग्राम शाह गोंडवाने के बावन गढ़ों की बागडोर सम्हालते हुए जब कल-कल बहती नर्मदा तट में बसा जबलपुर में स्थित गढ़ा कटंगा राज्य की गद्दी पर बैठा। जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। राज लोलुप्ता के कारण बाहर से आया हुआ एक महान तांत्रिक मदन महल की सघन पहाड़ी पर आकर भैरों बाबा की सेवा करते हुए योग साधना में लग गया। 

                    12 वर्ष तक तपस्या करने के बाद वह कपटी तांत्रिक पुजारी राजा संग्राम शाह से एकांत में बोला- हे राजन आप बहुत ही भाग्यशाली, समाजसेवी एवं पुण्यात्मा हैं। इसीलिये भैरों बाबा आप पर अत्याधिक प्रसन्न हैं। अब आप विशेष पूजा अनुष्ठान कर के भैरों बाबा से वरदान प्राप्त कर लें ।


       परन्तु हे राजन इसके लिये आप मध्य रात्रि के समय ही अमावस्या की रात्रि को अकेले निःवस्त्र होकरबिना कोई अंगरक्षकों के आकर पूजा अनुष्ठान करेंगे।


           ध्यान रहे यह बात सिर्फ आप और मुझे ही मालुम रहे, अन्यथा वरदान प्राप्त करना कठिन हो जायेगा। इस तरह की बात कपटी तांत्रिक पुजारी से सुनकर राजा अपने राजमहल में चले गये एवं चुपचाप बिना किसी को कुछ बताए पूजा अनुष्ठान के लिए उस समय का इन्तजार करते रहे । जब अमावश्या का समय आया तब राजा मध्य रात्रि के समय भैरोंबाबा के शक्ति स्थान की ओर जाने को तैयार हुआ । 

                तब उसके अंगरक्षकों ने देखा कि राजा बिना कोई अस्त्र-शस्त्र लिए अकेले ही रात्रि में बाहर जा रहे हैं, यह देखकर उन्होंने राजा को अकेले बाहर जाने से मना किया और उनसे अकेले बाहर जाने का कारण पूछा, राजा ने उन्हें सिर्फ टहलने का बहाना बता दिया। 

                          तब अंगरक्षकों ने कहा - हे राजन वह स्थान अत्यन्त निर्जन हैं, और रात्रि के समय आप बिना कोई अस्त्र-शस्त्र लिये अकेले बाहर जा रहे हो। इस स्थिति में किसी भी प्रकार की घटना हो सकती है।

                             अंगरक्षकों के कहने पर राजा बहुत सोच में पड़ गया तभी फड़ापेन (बड़ादेव) की कृपा से राजा के हृदय में प्रेरणा जागृत हुआ और उसके मन में अंगरक्षकों की बात जम गई तथा कपटी तांत्रिक पुजारी की चाल राजा को समझ आ गई और वे साथ में एक तलवार छुपाकर भैरोंबाबा के शक्ति पीठ (बाजना मठ) पर पहुंचे। उस स्थान का निरीक्षण करते समय एक कढ़ाव में खौलते तेल को  देखकर कपटी तांत्रिक पुजारी की चाल समझ में आ गई।


            राजा ने उसी पुजारी से भैरोंबाबा का साष्टांग प्रणाम करके बताने को कहा। तब पुजारी राजा को साष्टांग प्रणाम करके बताने लगा, तभी उस पुजारी के बाजू में छिपी तलवार राजा को दिख गई। राजा ने उसी वक्त अपनी तलवार से उस धूर्त कपटी तांत्रिक पुजारी का धड़ से सर को उड़ा दिया। वह सर कटते ही अपने आप भैरोंबाबा के चरणों में जा गिरा। खून के फब्बारे में भैरोंबाबा लाल होकर राजा के सामने प्रगट हो गये और राजा से वरदान मांगने को कहा,

             तब राजा संग्राम शाह ने यह वरदान मांगा था कि - हे भैरोंबाबा आप मुझे यही वरदान दें कि - "जब तक जगत में पृथ्वी, चाँद और सूरज हैं तब तक गोंड, गोंडी धर्म और गोंडवाने के इतिहास का अस्तित्व बना रहे तथा जबलपुर संस्कारधानी में स्थित गढ़ा कटंगा राज्य सहित सम्पूर्ण गोंडवाने में कभी अकाल न पड़े एवं कोई भी मानव भूख से न मर पावें । इसी वरदान के प्रभाव से आज तक परिश्रम करने वाला कोई भी मनुष्य गढ़ा कटंगा राज्य में भूखा नहीं मरता । 



आज भी इस महान "गोंडवाने में सारे जगत के चर-अचर, समस्त प्राणियों के लिए ढाई दिन का खुराक अदृश्य रूप में आज भी गढ़ा कटंगा राज्य में सुरक्षित है। भैरोंबाबा की कृपा से ही आज जबलपुर संस्कारधानी धन धान्य से परिपूर्ण है।


  ।। "श्री फड़ापेन महाव्रत पूजा" सातवा पाठ समाप्त ।।


                     ॥ बोलो फड़ापेन की जय ॥


इति सर्वशक्तिमान फड़ापेन की जय सभी देवी - देवताओं की जय, माता-पिता की जय सगा समाज की जय, कली कंकाली की जय, गोंडवाना देश की जय ।


जय सेवा                जय फड़ापेन           जय गोंडवाना



 रण्ड - 2 ( अध्याय - २)


मूंद पाठ -3 ( सर्वोच्च शक्ति का आमंत्रण )


नालुंग पाठ - 4 ( कोया पुनेम के बंदनीय)


सांयुग पाठ -5 ( कथा माता कली कंकाली की)


सारूंग पाठ - 6 ( पारी कुपार लिंगो)


येसंग पाठ - 7 ( कपटी तांत्रिक और महाराज संग्राम शाह )


परम शक्ति फड़ापेन की कथा

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