देवी दंतेश्वरी: शक्ति और श्रद्धा का प्रतीक

 देवी दंतेश्वरी: शक्ति और श्रद्धा का प्रतीक

राजा अन्नमदेव और देवी की स्थापना

राजा अन्नमदेव के रुकने से स्थापित हुई देवी दंतेश्वरी की काले ग्रेनाइट से बनी छह भुजाओं वाली प्रतिमा अद्वितीय है। दंतेवाड़ा में स्थित यह षट्भुजी प्रतिमा न केवल अपनी नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता भी विशेष है।


मूर्ति के दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य, राक्षस के बाल हैं। माँई का ऊपरी भाग नरसिंह अवतार का स्वरूप प्रदर्शित करता है। उनके सिर पर चांदी का छत्र है और वे वस्त्र व आभूषण से सुसज्जित हैं।


मंदिर का वास्तु और संरचना

मंदिर के द्वार पर दो द्वारपाल खड़े हैं, जिनके चार हाथ हैं। उनके बाएं हाथ में सर्प और दाएं में गदा है, और वे वरद मुद्रा में हैं। सिंह द्वार, जो 21 स्तंभों से युक्त है, इसकी पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान हैं। गर्भगृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने गरुड़ स्तंभ है।


यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं भी विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं, जो इस स्थान की धार्मिक विविधता को प्रदर्शित करती हैं।


52 शक्तिपीठों में से एक

दंतेश्वरी मंदिर, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है, दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में डंकनी-शंखनी नदी के संगम तट पर स्थित है। यह स्थान धार्मिक श्रद्धा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।


जनश्रुतियां और मान्यताएं

कहते हैं कि बस्तर के पहले काकतीय राजा अन्नमदेव वारंगल से आए थे। देवी दंतेश्वरी उनकी इष्ट देवी थीं। एक कहानी के अनुसार, देवी ने राजा को वरदान दिया था कि जहां तक वे बिना पीछे मुड़े जाएंगे, उनका राज्य वहीं तक फैलेगा।


जनश्रुतियों के अनुसार, राजा शंखिनी-डंकिनी के संगम तक पहुंचे। वहां उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, क्योंकि उन्हें माता की पायल की आवाज नहीं सुनाई दी। जैसे ही उन्होंने मुड़कर देखा, माता वहीं रुक गईं और आगे जाने से इंकार कर दिया। राजा ने संगम तट पर देवी के लिए एक सुंदर मंदिर बनवाया।


देवी के पदचिन्ह और श्रद्धा

मंदिर के पीछे स्थित बगिया में देवी के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं। यहां लोग नियमित रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहां मनोकामना करता है, उसकी इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।


देवी दंतेश्वरी न केवल आस्था का केंद्र हैं, बल्कि यह स्थान भारतीय संस्कृति और परंपरा का अनमोल धरोहर भी है।


जय मां दंतेश्वरी!


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